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अधिक मास की कथा

हमारी भारतीय संस्कृति को मानना पड़ेगा कि यह संस्कृति अपने आप में महान है | पूरे विश्व में ऐसी संस्कृति आपको कहीं जगह पर नहीं मिलेगी | यह पूरे विश्वास से मैं कहता हूं | इसलिए इस संस्कृति को मैं शत-शत प्रणाम करता हूं | आप जरा सूक्ष्म दृष्टि से सोचोगे तो ज्ञात होगा कि यह हकीकत है | क्योंकि भारतीय संस्कृति की खोज एक अदभूत है | उसकाे जानने के लिए मैं कुछ आपको उदाहरण बताता हूं जिससे आपको थोड़ा कुछ समझ पाओगे | उदाहरण के तौर पर देखने जाए तो पशु की बात करु ताे, यानी कि भैंस, बकरी, गाय, बाघ, कुत्ता विगेरे-विगेरे को हम पशु या प्राणी कहते हैं और वैज्ञानिक की भाषा में और अन्य धर्मों की नजर में तो यह सौ प्रतिशत प्राणी ही कहते हैं | इससे मनुष्य को कोई लेन-देन नहीं है | बस यही उन लोगों की सोच होती है | पर आप जरा गौर से देखो कि हमारी भारतीय संस्कृति की नजर, उनकी सोच कितनी अलग देखने को मिलती है | जैसे कि गाय को हम लेते हैं | गाय को भारतीय संस्कृति में गाय माता कहते है | उसे पूजनीय और आदरणीय भाव से देखती है और उसी गौ माता में 33 करोड़ देवी देवताओं काे देखने वाला कोई धर्म है तो वह हिंदू धर्म ही है | ऐसे ही पौधों में भी भगवत भाव देखने को मिलता है | जैसे कि तुलसी के पौधें को हम तुलसी माता कहते हैं | सब भक्तजनों के आंगन में आप को तुलसी माता का पौधा देखने को मिलेगा और उसकी हर रोज सुबह में उनकी पूजा भी करते हैं |

पीपल के वृक्ष में साक्षात भगवान विष्णु का ही रूप मानते हैं | उसकी प्रदक्षिणा करके अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं | ऐसे ही एक अदभूत खाेज के बारे में आज हम जानेंगे जो अतिरिक्त दिनों निकल ले और उसे एक मास बनाकर उस को विशेष दर्जा दिया जाए और उसका महत्व भी सबसे अधिक माना जाता हो | उसकी कथा का और महात्मय की बात करेंगे | जो 16 मई से 13 जून तक रहेगा | इसलिए पहले हम उस अधिक मास का महत्व के बारे में जानेंगे |

भारतीय संस्कृति में, पुराणों में अधिक मास की बहुत भारी महिमा बताई गई है | यदि हम लोग 12 महीने में जो दान- पुण्य नहीं कर शके वह कार्य हम इस अधिक मास में कर शकते हैं | जो श्रद्धालु हैं और ईश्वर प्राप्ति करना चाहता है उनके लिए तो अधिकमास वरदान रूप है | इसलिए सभी भक्तजनों को इसका लाभ उठाना चाहिए | इस मास में जितना हो शके उतना ध्यान, भजन-कीर्तन की मात्रा बढ़ाना चाहिए | जो जप-तप-व्रत इत्यादि करते हैं उसको ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए | इस मास में जो भजन-कीर्तन करते हैं, जप-तप करते हैं उनका फल अक्षय माना जाता है | इसके इलावा धार्मिक पुस्तकें पढ़ना चाहिए, सतप्रवृति भी करनी चाहिए | मंदिर में श्री हरि दर्शन करना, पवित्र नदियों के तीर्थों में जाकर वहां स्नान, पूजा-पाठ, यज्ञ इत्यादि करना चाहिए | इसकी महिमा का वर्णन करने जायेंगे तो किताबों की किताब भर जायेगी | फिर भी हम उसका वर्णन नहीं कर शकेंगे

अब हम उस अधिक मास के बारे में जानेंगे कि अधिक मास क्या है ? क्यों उसे मलमास कहते हैं ? और कैसे उसका पुरुषोत्तम मास नाम पड़ा ?
भारतीय संस्कृति के पंचांग के अनुसार हर 3 साल के बाद जो एक बार आता है उसे हम अधिक मास करते हैं | हमारे सूर्य वर्ष में 365 दिन होते हैं और चंद्र वर्ष में 354 दिन होते हैं | इन दोनों के बीच जो 10 दीनाे का अंतर बनता है उसी 10 दिनों को हर एक साल के हिसाब से जोड़कर 3 साल के बाद एक अतिरिक्त मास बनता है | उसे हम अधिकमास कहते हैं | अधिक मास यानी कि 12 महीने के उपरांत एक अतिरिक्त मास निकलता है उसे हम अधिकमास करते हैं | और यह अधिकमास हर 3 साल के बाद आता है | अब हम जानेंगे कि अधिक मास का नाम मलमास नाम क्यों पड़ा ? जिस मास में संक्रांति नहीं होती उस मास को मलिन कहते हैं | यानी कि इस महीने में कोई शुभ कार्य नहीं होते जैसे कि शादी-विवाह, वास्तु-पूजा, गृहप्रवेश, नामकरण आदि-आदि पवित्र कार्य नहीं कर शकते | क्योंकि इस मास को अशुभ मानते हैं | जो अशुभ और मलिन होता है इसलिए उसका नाम मलमास पडा | स्वभाविक ही जिसका नाम मलमास है उसको सबको तिरस्कृत के भाव से ही देखेंगे और ना ही उसको मान सम्मान मिलेगा |

अब हम कथा के बारे में थोड़ा कुछ जानेंगे | इसी मलमास को बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था | जैसे कि हम सब लोग जानते हैं की तेरवा आंक अशुभ होता है और यह मलमास भी 13वाँ महीने की गणना में आता है | यानी कि उसको 13वाँ महीना ही मानते हैं | इसलिए इसको सब अशुभ मानते हैं | दूसरी कठिनाई देखे तो यह मास का कोई भी अधिष्ठदेवता नहीं थे | इसीलिए सभी मास उनकी हंसी- मजाक उड़ाते थे और सभी मास उससे दूर ही रहते थे | तीसरी बात यह थी कि इस महीने में कोई संक्रांति नहीं होती थी जो शुभ कार्य मे विघ्नरूप बनता है | मलमास को यह सारी कठिनाइयों से गुजरना पड़ता था | इस मुसीबतों के कारण मलमास दु:खी-दु:खी होने लगा था | उनका मन आकुल-व्याकुल रहता था | वह किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं था | वह किसी सतत चिंतित घबराया हुआ और हताश-निराश में रहता था | उसकी समस्या का कोई समाधान नहीं हो रहा था | मलमास दिन-प्रतिदिन लाचार और नुमाइश बनता जा रहा था | क्योंकि ना ही कोई उसको याद करता ना ही कोई उसको आदर, सत्कार और प्रेम देता | दूसरी बात कि इसमें सब शुभ कार्य करने से मना कर देते थे | इसी कारण उनकी मन:स्थिति इतनी भयंकर हो गई थी जिससे वह अंदर ही अंदर पिघलता जा रहा था |

एक दिन अचानक नारदमुनि घूमते-घामते उस मलमास के पास से गुजर रहे थे | तब उनकी नजर मलमास पर पड़ी और बोले, अरे भाई ! मैं सभी मास काे मिलकर आया और सब के मुंह पर आनंद और प्रसन्नता दिखाई दी थी | लेकिन तुम्हारे चेहरे पर ना कोई आनंद, ना कोई प्रसन्नता | क्यों गुमसुम और उदासीन बैठे हो ? तब मलमास बोला, हे ! मुनीश्वर ! आपको मेरी सारी व्यथा का ज्ञान है | आप सब कुछ जानते हो कि मैं मलिन हूं | इसलिए सब मुझे मलमास कहते हैं | सारे मास मुझसे दूर भागते हैं और कोई भी मनुष्य मेरे महीने में शुभ कार्य नहीं करते हैं, पर डरते हैं कि कोई अशुभ घटना ना बन जाए विगेरे-विगेरे कारणाे से मैं शौक-मग्न हुँ | कृपया मेरे इस समस्याओं का निराकरण कीजिए | जिससे मैं चैन से जी सकूं अन्यथा इस पृथ्वी पर मेरी उत्पत्ति की ना होती तो अच्छा था | नारद बोले, नहीं मलमास ऐसा मत सोचो | तुम्हारी उत्पत्ति कोई अच्छे कार्यों के लिए की गई हो | शायद तुम्हे पता भी न हाे | जो कुछ हो रहा है वह परब्रह्म परमात्मा की इच्छा अनुसार ही हो रहा है | इसलिए तुम चिंतित ना हो | मैं तुम्हें भगवान नारायण के पास ले चलता हूँ | शायद वहां तुम्हारी सारी समस्याओं का समाधान हो जाये | तब मलमास बोला, नहीं,नहीं ! नारदमुनि ! मैं वहां किस मृँह लेकर भगवान श्रीहरि के पास जाऊ | एक तो मैं मलिन हूं | अशुभ हुँ | तो कैसे वहां चलु | मुझे डर लगता है कि भगवान नारायण मुझे देखकर कहीं श्राप ना दे दे | ऐसे ही मेरी हालत ऐसी है तो श्राप देने के बाद मेरी कैसी दुर्गति होगी ? इसलिए मुझे नहीं आना | चलेगा, मुझे ऐसे ही रहने दाे | तो फिर नारद बोले, ऐसा सोचने से और यहां बैठने से कुछ नहीं होगा | एक बार प्रयास तो करो वहां जाने का | क्योंकि भगवान नारायण दयालु, कृपानिधान, दु:ख निवारक और पापों का नाश करने वाले हैं | वह तुम्हारी सारी समस्या का समाधान कर देंगे | ऐसा सब कुछ कहने के बाद मलमास नारद जी के वचनों पर श्रद्धा करके भगवान नारायण के पास पहुंचे | तब वहां भगवान श्री विष्णु अपने शेषनाग के शैया पर ध्यानस्थ अवस्था में थे | उन लोगों को आने से भगवान श्री हरि ने मंद मुस्कुराते और प्रेम भाव से कहा, बोलो नारद ! कौन सी समस्या का समाधान के लिए यहां आए हो ? नारदजी बोले, हे प्रभु ! आप तो अंतर्यामी हो | सब कुछ जानते हो | आप से भला क्या छुपा रह सकता है | प्रभु यह मलमास हैं | जो अपने सारे दुखों का वृतांत आपको बताएगा | तब श्री हरि बोले, बोलो मलमास ! तुम्हारी समस्या बताओ मुझे | फिर मलमास ने उसका पूरा वृतांत भगवान श्रीहरि को बताया | सारा वृत्तांत सुनने के बाद श्रीहरि बोले, हे मलमास ! तुम दु:खी मत हो | तुम्हारी उत्पत्ति मेरी अंतः प्रेरणा से हुई है | तुम नहीं जानते कि तुम्हारी उत्पत्ति से इस संसार में नहीं पूरे ब्रह्मांड के लिए महत्वपूर्ण है | इसलिए तुम निश्चिंत हो जाओ | मैं जानता हूं कि तुम्हारा कोई स्वामी नहीं है, लेकिन अब से मैं स्वयं तुम्हारा स्वामी हूं, अधिषट देवता बनूंगा | अब तुम्हें मलमास से नहीं परंतु पुरुषोत्तम मास ही सारा संसार जानेगा और प्रचलित हो जाओगे और साथ में तुम्हें वरदान भी देता हूं कि जो भी मनुष्य इस मास में मेरी पूजा-अर्चना, भक्ति करेगा वह सारे पापों से मुक्त हो जाएगा | यदि कोई भी भक्त या मनुष्य पूर्ण मनोभाव से जप-तप, दान-पुण्य करेगा उससे अक्षय फल की प्राप्ति होगी | ऐसा सारा वरदान को प्राप्त करके मलमास खुशी से झूम उठा और भगवान श्री हरि को साष्टांग दंडवत प्रणाम करके वापस अपने स्थान पर चले गए | और इसी तरह से उसका नाम पुरुषोत्तम मास पड़ा था | बस आज की कथा यहां से समाप्त होती है | अगले सप्ताह में और एक नई और रोमांचक ज्ञान भक्ति की बात लेकर आएंगे

हरे राम……हरे राम……हरे राम…….
ॐ……..ॐ……..ॐ……..

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