* जीवन में सदगुरुदेव का महत्व :-
जय सियाराम……….! हरे राम……! हरे राम………!
आज गुरु पूर्णिमा है और सभी भक्तों को मेरी ओर से इस पावन पर्व की खूब-खूब बधाई हो | इस पर्व की बहुत भारी महिमा है | इस पर्व के दिन शिष्य यां साधक अपने गुरु के आश्रम में जाते हैं | वहां जाकर गुरुदेव की पूजा-अर्चना करते हैं | उनकी सेवा करते हैं और फिर गुरुदेव के चरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम करके अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं | इसलिए आज हम आपको सद्गुरु का महत्व क्या है और उसका महिमा क्या है ? उसके बारे में बताऊंगा | हमारे जीवन में सद्गुरु का महत्व शास्त्रों में, पुराणों में और ऋषि मुनियों ने खूब आदर से बताया है | क्योंकि सद्गुरु का स्थान सबसे ऊंचा माना गया है | हमारे शास्त्रों में पुराणों में उनका स्थान सर्वोपरि बताया गया है | इसलिए तो हम प्रार्थना हो या भजन या कोई भी शुभ प्रसंग में पहले इस श्लाेक का तो हम जरुर से उच्चारण करते हैं |
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वर: |
गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ||
इस श्लोक से ही हमें पता चलता है कि वह सभी देवों में सर्वश्रेष्ठ देश कहा जाता है | क्योंकि इनको सभी देव नमन करते हैं | आदि-अनादि काल से ये गुरु की परंपरा चलती रही है और चलती रहेगी | इस परंपरा को कोई भी विक्षेप नहीं कर शकता | हम गुरु के बारे में जितना भी यहां उनका वर्णन करें उतना कम है | क्योंकि उनका वर्णन आज तक कोई भी पूरा नहीं कर शका | इसलिए तो हम गुरु को साक्षात परब्रह्म कहते हैं | पहले हम गुरु के अर्थ के बारे में जानने का प्रयास करेंगे कि गुरु किसे कहते हैं और गुरु क्या है ? गुरु यानि कि जो पहला अक्षर गु माना अंधकार और रु माना प्रकाश यानी के अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना ही हम गुरु करते हैं | यानी कि जो अंधकार रुपी अज्ञानता को मिटाकर प्रकाश रूपी ज्ञान का अनुभव कराने वाले संत महापुरुष को गुरु कहते हैं |
यदि हमें संसार रूपी सागर से भवपार होना है तो गुरु तो करना ही पड़ेगा | गुरु बिना इस जीव का उद्धार होना असंभव है | इसलिए तो एक संत ने बहुत अच्छा कहा है,
गुरु बिना ज्ञान न उपजे, गुरु बिन मिटे ना भेद |
गुरु बिना संशय ना मिटे, जय जय जय गुरुदेव ||
गुरु बिन ज्ञान न उपजे……. हम यदि सभी जगह पर देखें तो हर जगह गुरु की आवश्यकता पड़ती है | जैसे कि जब हम नन्हे मुन्ने बालक होते हैं तब हमारे माता पिता हमारे गुरु होते हैं | जो हमें संसार का ज्ञान देते हैं | फिर हम थोड़े बड़े होते हैं तब शिक्षक की जरूरत पड़ती है | जो हमें स्कूल-कॉलेज की व्यवहारु विद्या देते हैं | इसके बाद अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग गुरु की आवश्यकता होती है | जिससे हमारा ज्ञान उपजता है | यानी कि ज्ञान की बढ़ोतरी होती है | गुरु बिन मिटे न भेद…….. यहां उस भेद के बारे में कहा है जिसे हम तत्वज्ञान कहते हैं | इस ज्ञान में आत्मतत्व परमात्मा तत्व की बात होती है | हर मनुष्य का अंतिम लक्ष्य तो अपने आप को जानना, आत्मा का अनुभव करना ही है | परंतु इसके लिए हमें सच्चे सद्गुरु की शरण में जाना होगा | जो अपने आप में पूर्ण हो उसकी शरण में जाना | यानी कि उस भेद को मिटाने के लिए गुरु के आश्रम में रहकर उनकी सेवा पूजा करनी चाहिए | गुरु आश्रम एक ऐसी जगह है जहां पूरा आध्यात्मिक वातावरण होता है | भक्तिमय वातावरण होता है | वहॉ हरि कथा, भगवान महिमा और सत्संग होता है | जिससे हमारा मन सहज ही भक्ति की और ईश्वर की ओर बहने लगता है |
हमें प्रयास करने की जरूरत नहीं पड़ती | यदि हम वहां गुरु आज्ञा को शिरोधार्य करके सेवा करते हैं, आश्रम की झाड़ू बाेछारी करते हैं, बर्तन मांजते हैं आदि-आदि सेवा जो तन मन और धन से करते हैं तो गुरु कृपा बरसने में देर नहीं लगती | जिस दिन गुरु कृपा बरसी तब समझ लो कि हमारा मनुष्य जन्म सफल हो जाता है | इस भवपार से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती हैं | हमारा भेद परम मिट जाता है | गुरु बिन संशय ना मिटे…………. संशय ना मिटे यानी कि संसार की मोह माया का पर्दा | जैसे कि यह पूरा जगत हमें सत्य भास्ता है, पर हकीकत में तो यह पूरा स्वप्न जगत है | जब हम रात को गहरी नींद में सो जाते हैं तब हम सपनों की दुनिया में चले जाते हैं और अजब-गजब के सपनों का अनुभव करते हैं | बिल्कुल सत्य ही लगता है | जैसे ही सुबह में हमारी आंख खुल जाती है तो वह पूरा स्वप्न जगत गायब हो जाता है | ऐसे ही जब तक हमारा शरीर जीवित है, तब तक हमें संसार के सारे व्यवहार रिश्ते-नाते सत्य भासते हैं | लेकिन जब शरीर की मृत्यु हो जाती है, तब रिश्ते-नाते संसार का अस्तित्व नहीं के बराबर हो जाता है | यानी कि पूरा जगत सपना ही हो जाता है | परंतु संसार की सत्यता, उसका अस्तित्व हमारे शरीर से ही उद्भव होता है | क्योंकि शरीर को ही हम मैं मानते हैं मैं शरीर हूं मैं फलानाभाई हुं और उसके साथ जुड़े रिश्ते भाई-बहन, माता-पिता, बेटा-बेटी विगेरे विगेरे का नाता ही हमें और मोह माया की गहराई में ले जाते हैं |
इसलिए हमारे शरीर की मृत्यु हो जाए, सगा संबंधी हमें शमशान की ओर ले जाए, उसके पहले कोई सच्चे सद्गुरु की शरण खोज लेनी चाहिए | उनका सानिध्य का लाभ लेना चाहिए | उनकी कथा सत्संग का श्रवण पान करना चाहिए | जिससे हमारा संसार की मोह माया का संसय मिट जाए और हम उस आत्मतत्त्व में स्थित हो जाए | जय जय जय गुरुदेव………… गुरुदेव हमारे ज्ञान को दूर करके ज्ञानवान बनाते हैं | हमारे सारे भेदभरम को मिटाकर अभेद तत्व में पहुंचा देते हैं और संसार की जो मोह माया का पर्दा हटाकर हमारे सारे संसय को दूर करके मोह निशा से जगा देते हैं | इसलिए तो हम गुरुदेव की जय जयकार करते हैं | जो हमें सारे बंधनों से मुक्त कराने का सामर्थ्य रखते हैं | गुरुदेव की जितनी भी महिमा का वर्णन करें उनका गुणगान करें उतना कम है | उनकी महिमा अनंत है अपरंपार है अपार महिमा है | थोड़ी कुछ गुरु की महिमा का वर्णन हमें भगवान शिवजी और माता पार्वती के संवाद गुरुगीता में देख सकते हैं | गुरुगीता एक ऐसा ग्रंथ है, जो हमारे गुरु के प्रति श्रद्धा को और मजबूत कर देती है | गुरुगीता में जो गुरु की महिमा उनका वर्णन किया है उनका में आने वाले ब्लॉग में थोड़ा कुछ बताने का प्रयास करूंगा | तो मानना पड़ेगा कि गुरु का महत्व हमारे जीवन में कितना बडा महत्वपूणँ होता है और इस शुभपर्व दिन गुरु का आशीर्वाद लेकर उनके चरणों में आदर् से प्रणाम करके हमारा जीवन सफल बनाना चाहिए | यही गुरु पूर्णिमा का यही उद्देश्य है |………………………!
🌹🌹🌹ओम………. ओम……… ओम…….. ओम…….. ओम……..!🌺🌺🌺
🌹🌹🌹 हरे राम…….. ! हरे राम……..! हरे राम……..!🌺🌺
🪻🪻 बोलो माॅं आद्यशक्ति जगदंबा माता की जय………🪻🪻