Skip to content Skip to sidebar Skip to footer

ध्यान के प्रकार कितने हैं

जय सियाराम………जय सियाराम…. हरे राम..! आज हम ध्यान के प्रकार के बारे में जानेंगे कि ध्यान के कितने प्रकार है ? आगे हमने ध्यान के बारे में समझा कि ध्यान क्या है ? और जो शास्त्रों में पुराणों में भी उनका बहुत महत्व बताया है | यही ध्यान की पद्धति से न जाने कितने लोगों ने अपना जीवन को मंगलमय बना दिया था | यही ताे ध्यान की ताकत है, उनकी शक्ति है | हमारे भारत देश में जो जो भी महापुरुष हुए हैं उनके पीछे ध्यान का बहुत बड़ा योगदान रहा है | ध्यान एक ऐसी कुंजी है जो सारे आध्यात्मिक रहस्य को खोलने का सामर्थ्य रखती है | शास्त्रों में पुराणों में तो ध्यान की महिमा का वर्णन किया तो है ही पर, जब हम स्वयं भगवान श्री कृष्ण के मुख से उनकी महिमा का वर्णन सुनेंगे तो उनका प्रभाव और आस्था कई गुना बढ़ जाती है | जैसे कि महाभारत युद्ध में श्रीमद्भभगवत गीता के ज्ञान द्वारा भगवान श्री कृष्ण ने ध्यान योग के बारे में अर्जुन को बताया था और उस ध्यान को योग में परिवर्तित कर दिखाया था | जिससे पूरे विश्व में एक नया इतिहास बन गया | वहीं ध्यान योग की क्रिया से न जाने कितने-कितने महापुरुषों भवसागर से पार हो गए थे और आज भी हो रहे हैं | भगवान श्री कृष्ण ने गीता में ध्यान योग के बारे में बहुत अच्छा बताया है | जिसे पढ़ने या सुनने मात्र से हम पावन हो जाते हैं | इस ध्यान योग के बारे में मैं कभी आने वाले ब्लॉग में बताने का प्रयास करूंगा | फिलहाल तो हम ध्यान के प्रकार के बारे में जानने का प्रयास करेंगे |

ध्यान के संबंधित महापुरुषों के ओर थोड़े उदाहरण बताता हूं | जिससे आप जैसे सज्जन भक्तों की श्रद्धा ओर भी मजबूत बने | आप लोगों ने महान वैज्ञानिक अाल्बर्ट आइंस्टाइन का नाम तो सुना होगा, जिन्होंने भौतिक जगत में एक नया इतिहास रचा दिया था | यानी संशोधन की दुनिया में | वास्तविक में तो आइंस्टाइन बचपन में तो मंद- बुद्धि का बालक था | पढ़ने में भी उतना खास तेजस्वी नहीं था | फिर भी आज महान वैज्ञानिकों में उनका नाम आदर्श से लिया जाता है | ऐसा तो क्या हुआ था जो पीछे से बाद में आइंस्टाइन की बुद्धि तेजी से विकसित हो गए थी ? ऐसे तो कहीं कारण बताया है, परंतु उनमें से एक कारण यह भी था जिसमें अाइंस्टाइन ने खुद बताया था कि मेरी बुद्धि को विकसित करने में भारतीय संस्कृति का बहुत बड़ा योगदान रहा है | मैं हर रोज ध्यान का अभ्यास करता था | ध्यान के अभ्यास से मेरा मन शांत हो जाता था और शांत मन होने से ही मुझे अंत:करण से ही नहीं खोज की प्रेरणा का संचार होता था | इसलिए खुद उन्होंने ही माना था कि ध्यान में बहुत बड़ी ताकत होती है | ऐसा ही एक और दूसरा उदाहरण मैं आपको बताता हूं जो हमारे भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का है | हमारे भारत देश को आजाद कराने में, अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने में गांधीजी का योगदान साे प्रतिशत था | देश को आजादी दिलानी या गुलामी की जंजीरों से मुक्त करना कोई बच्चों का खेल नहीं था | उनमें तो कहीं लोगों ने कुर्बानी दी थी, कहीं लोगों शहीद भी हो गए थे, कितने लोगों ने अपने प्राणों की आहुति भी डाली थी | तब जाकर हमारा भारत देश आजाद हुआ था |

कहने का तात्पर्य यही है कि इतना बड़ा कार्य का बीड़ा उठाना कोई आम आदमी का काम नहीं था | पर पावरफुल व्यक्ति का ही काम था | और उसमें तेज माइंड वाला ही चाहिए था | और वह हमारे गांधी बापु ही थे | गांधीजी के जीवन में भू कई उतार-चढ़ाव आए थे | क्योंकि आजादी से लेकर कई राज्यों को इकट्ठा करना, कार्यों में चपलता बुद्धिमता और साहस से सभी होना अनिवार्य है | तब जाके कोई महान कार्य हो सकता है | इसलिए कोई व्यक्ति ने एक बार गांधी जी को पूछ लिया था, कि बापू अापने इतना बड़ा कार्य को हाथ में लिया है और कई सारी मुसीबतें, कठिनाईया, आफतो आई होगी फिर भी कैसे आप इतनी सहजता से निर्भयता से और धैर्य से सभी कार्य कर देते हो ? तब गांधी जी ने बहुत अच्छा और सुंदर जवाब दिया था, कि जब भी कोई बडी आफत यां कठिनाई मुझ पर हावी होती तब मैं श्रीमद्भगवद्गीता माता के पास पहुंच जाता था और उनको पढ़ने के बाद में शांत हो जाता था | ध्यान में बैठ जाता था | जहां से मुझे सारे प्रश्न का हल यां सारी समस्याओं का निराकरण हो जाता था | जिससे मुझ में कहीं सारी शक्ति का संचार होता था और एक नया उत्साह और जोश का प्रादुर्भाव होता था |

तो मानना पड़ेगा कि ध्यान एक आध्यात्मिक मार्ग का अद्भुत और अकल्पनीय शस्त्र है | जिससे हम सारी विडंमनाओ, मुसीबतों को काट सकते हैं | यही तो ध्यान का उत्तम गुण है | सारे याेगो में से श्रेष्ठ कहां गया है | ऐसे तो कई सारे उदाहरण हैं जो ध्यान के माध्यम से इहलाेक को भी संवारा और परलाेक काे भी संवार दिया | तो अब हम ध्यान के प्रकार के बारे में जानेंगे |

ध्यान के प्रकार :- हमारे शास्त्राे में ताे ऐसे तो कही सारे ध्यान के प्रकार बताया है | लेकिन यहां हम जो मुख्यतः अधिकतम उपयोग करते उसके बारे में ही जानेंगे | भगवान शिवजी ने भी माता पार्वती को कई सारे ध्यान के प्रकार कहे थे | साथ में हमारे ऋषि-मुनियों ने भी उनकी सोच समझ से भी ध्यान के प्रकार कहां है | फिर भी हमारे शास्त्रों के अनुसार ध्यान के चार भागों में विभाजित करा है | जैसे कि पहला आता है देखना, दूसरा सुनना, तीसरा आता है श्वासलेना और चौथा आंख बंद करना | यानि कि देखना, सुनना, श्वास लेना और आंखें बंद करना सभी ध्यान के प्रकार है |
देखना :- देखना यानी कि साक्षी ध्यान
सुनना :- सुनना यानि कि श्रवणध्यान
श्वासलेना :- श्वासलेना यानी कि प्राणायाम ध्यान
आंखें बंद करना :- आंखे बंदकरना यानी कि भृकुटि ध्यान
अब हम इन चारों ध्यान का अर्थ समझने का प्रयास करेंगे | पहला ध्यान देखना यानी कि साक्षी ध्यान | उसे दृष्टा ध्यान भी कहते हैं | इस ध्यान में योगी सारे व्यवहार संसार का करता है, पर उनका मन उस आत्मतत्व में ही स्थिर रहता है | संसार का कोई भी आकर्षण-विकर्षण उनके मन में नहीं आता |

यह बस सारी परिस्थितियां का साक्षी भाव से देखता है | यानी कि सब परिस्थितियों को आते जाते का भाव रखता है | उन परिस्थितियों से चलायमान नहीं होता | इस ध्यान में योगी चलते, फिरते, घूमते, बैठते, सोते हुए ध्यान का आनंद ले सकता है | बस दृष्टा बनकर सोचता है कि सब बदलने वाला सब कुछ जाने वाला है | सिर्फ मैं आत्मा बदल हूं | मैं ज्याें का त्याें हुं | ऐसा भाव बनाकर अपने आप में डूब जाता है | इसके बाद दूसरा ध्यान है सुनना यानी कि श्रवण ध्यान | इस ध्यान काे नादब्रह्म ध्यान भी कहते हैं | इसमें योगी धीरे-धीरे शांत अवस्था में जाकर नाद ब्रह्म को सुनने का प्रयास करता है | नादब्रह्म के बारे में अगले आनेवाले ब्लॉग में पूरा विस्तार से बताने का प्रयास करूंगा | यह ध्यान करना इतना आसान भी नहीं है | क्योंकि इस ध्यान में ताे योगी को पूरा गहराई में जाना होता है | यदि हम कोलाहोल, घाेंघाट और अशांत वातावरण में इस ध्यान में सफलता प्राप्त नहीं हाेती है | इसके लिए तो पूरा शांत वातावरण यातो फिर पूर्ण आध्यात्मिक जगह पे ही जाना पड़ता है | यदि याेगी ध्यान की गहराई में चला गया तो उसे उस नादब्रह्म का ध्वनि सुनाई देती है | वह नादब्रह्म ध्वनि प्रणव मंत्र ओंकार ही होता है | जो पूरे ब्रह्मांड का मूल है | इस ध्यान में योगी गहराई में जाकर उस नादब्रह्म ध्वनि को सुनने में उसका आनंद प्राप्त करता है |

अब हम तीसरा ध्यान श्वासलेना के बारे में जानेंगे | यानी कि प्राणायाम ध्यान | शास्त्रों में पुराणों में यह ध्यान की बहुत महिमा बताई गई है | यह ध्यान के अभ्यास से योगी सिद्ध पुरुष बन जाता है | यह ध्यान साक्षी ध्यान और श्रवण ध्यान से थोड़ा सहज और सुगम है | क्योंकि ध्यान में हमें अपने नथुने से आते-जाते श्वास पर मन को स्थिर करना होता है | यानी कि जो श्वास अंदर जाता है फिर बाहर आता है उन यौगिक क्रियाओं को देखना ही प्राणायाम ध्यान कहते हैं | इस ध्यान का बहुत बड़ा फायदा यह है कि हमारी एकाग्रता बढ़ती है | बाकी तो एकाग्रता प्राप्त करने के लिए ना जाने हम कितने कितने अलग-अलग प्रकार के नुस्खे अपनाते हैं, पर कोई रिजल्ट प्राप्त नहीं होता | लेकिन प्राणायाम ध्यान से तो अपने आप ही एकाग्रता सेट हो जाती हैं | उसके लिए तो ना ही कोई जोर जबरदस्ती करनी पड़ती है | मैं अपने आनेवाले ब्लॉग में एकाग्रता के बारे में थोड़ा कुछ बताऊंगा कि शास्त्रों में उनका कितना महत्व होता है | तो यह ध्यान साधक को जितना हो सके उतना समय निकालकर करना चाहिए | जिससे हमारे जीवन में चार चांद लग जाए | अब हम चौथा ध्यान और आखरी ध्यान आंख बंद करना के बारे में जानेंगे | यानी कि इस ध्यान में योगी या तो साधक आंखें बंद करके अपने तीसरी आंख का ध्यान करता है | तीसरी आंख यानि की आज्ञाचक्र | इस ध्यान की भी उनकी अलग सी महिमा है | इसमें योगी दोनों आंखों के बीच भृकुटी के मध्य में आज्ञाचक्र का ध्यान करता है | यह ध्यान भी साधक के लिए बहुत अच्छा है | क्योंकि यह ध्यान भी आप कहीं जगह पर, कोई भी समय पर और कहीं पर भी कर सकते हैं | जब साधक इस ध्यान की गहराई में जाता है, तब उनको आठ पंखुड़ी वाला चक्र का दर्शन होता है और उसका ध्यान धरके योगी आनंद का अनुभव लेता है |

इसके अलावा और भी ध्यान के प्रकार है जैसे कि शांडिल्य उपनिषद में ध्यान के दो प्रकार बताए हैं | पहला सगुन ध्यान और दूसरा निर्गुण ध्यान | सगुन ध्यान उसे कहते हैं जो अपने ईष्टदेव यां भगवान की मूर्ति को देखकर उसमें डूब जाना | इसके उदाहरण देखें तो भक्त नरसिंहमेहता, मीराबाई विगिरे जैसे भक्तों ने सगुन ध्यान के माध्यम से भगवान की मूर्ति में से साक्षात् श्री हरि का साक्षात्कार किया था | निर्गुण ध्यान उसे कहते हैं जो निराकार परब्रह्म तत्व का ध्यान करते हैं | वह कोई इष्टदेव या मूर्ति का ध्यान नहीं करते | सिर्फ अजर, अमर, अविनाशी आत्मतत्व का ही ध्यान धरते हैं | हमारे कबीरजी, भगवानमहावीर, भगवानबुद्ध विगेरे महापुरुषों निर्गुण ध्यान करते थे | दूसरा घेरंड संहिता में भी ध्यान के तीन प्रकार बताए गए हैं | जैसे कि स्थूल ध्यान ज्योति ध्यान और सुक्ष्म ध्यान | सभी प्रकार अपने आप में उत्तम है | इसमें भी योगी इन तीनों प्रकार के ध्यान के माध्यम से आत्मतत्व में परमात्मा तत्व में विलीन हो जाता है | इस में जो पहला ध्यान सूक्ष्म ध्यान है, उसमें योगी यां भक्त अपने इष्टदेव या मूर्ति का ध्यान करता है | यह ध्यान सगुन ध्यान जैसा ही है | इसके बाद जो दूसरा ध्यान ज्योति ध्यान है उसमें योगी ज्योतिस्वरूप आत्मतत्व का ध्यान करता है |

जिसमें योगी तेजोमई प्रकाश पुंज ज्योति का दर्शन करके तृप्ति और आनंद का अनुभव प्राप्त करता है | और इसके बाद जो तीसरा ध्यान सुक्ष्म ध्यान में योगी या साधक सूक्ष्म जगत की यात्रा करता है | यानी कि स्थूल शरीर को भेदकर सूक्ष्म शरीर में प्राणों को लाकर कुंडलिनी शक्ति का ध्यान करता है | जब यह ध्यान योगी का सिद्ध हो जाता है, तब सारे सूक्ष्म जगत के रहस्याे योगी को ध्यान में अनुभव होने लगता है और फिर उसके आनंद में डूब जाता है | इसके बाद और एक ध्यान का प्रकार है जो बौद्ध धर्म में आता है | जिसे हम विपश्यना ध्यान कहते हैं | यह ध्यान भी आध्यात्मिक जगत में बहुत प्रचलित है | इस ध्यान के माध्यम से कहीं योगी साधकों ने अपना आध्यात्मिक जीवन सफल कर दिया था और आज भी कर रहे हैं | क्योंकि यह ध्यान एकदम सहज और सुगम है | जो हर कोई मनुष्य आसानी से कर सकता है | विपश्यना यानी कि आओ ध्यान में बैठो और बस शांत हो जाओ और जो जैसा है वैसा ही देखना ही विपश्यना ध्यान कहते हैं | इसमें अपनी तरफ से कुछ प्रयास या जबरदस्ती नहीं करना होता है | इस ध्यान में आपको कोई भी क्रिया नहीं करनी पड़ती है | आप जैसे बैठे हो वैसे बैठे रहो | यदि आप का मन कहीं भी जाता है तो जाने दो, आपकी बुद्धि कुछ भी सोचती है तो सोचने दो | आपको नहीं सोच पर ध्यान देना है ना ही मन पर, आप सिर्फ बैठे रहो कोई जबरदस्ती नहीं करना | जो जैसा होता है बस वैसे ही देखते जाओ देखते जाओ | ऐसा हर रोज अभ्यास करने से फिर आपका मन अपने आप ही धीरे-धीरे शांत होता जाएगा | और शांत होते ही आप एक दिन उस आत्मतत्व की गहराई में जाने में सफल हो जाओगे

🌹🌹🌹ओम………. ओम……… ओम…….. ओम…….. ओम……..!🌺🌺🌺
🌹🌹🌹 हरे राम…….. ! हरे राम……..! हरे राम……..!🌺🌺
🪻🪻 बोलो माॅं आद्यशक्ति जगदंबा माता की जय………🪻🪻

Leave a comment