आज का प्रश्न बहुत सुंदर है की भजन क्या है ? कीर्तन क्या है ? हम ज्यादातर आध्यात्मिक जीवन काल में जो शब्द का अधिक से अधिक उपयोग करते हैं वह भजन कीर्तन है | ये बिल्कुल सही बात है | हम लोग ज्यादा से ज्यादा भजन कीर्तन शब्द का उपयोग आध्यात्मिक मार्ग में बहुत बार लेते हैं | इसके बिना तो आध्यात्मिक मार्ग सूना सूना लगता है | ऐसा कोई भक्त, संत या ऋषिमुनि नहीं होगा जिसने भजन-कीर्तन शब्द का उच्चारण किया ना हो और हाेई शकता नहीं | हकीकत में तो भजन कीर्तन का शब्द बोलने से ही हमारा आध्यात्मिक मार्ग खुल जाता है | पहले हम भजन के बारे में समझने का प्रयास करेंगे कि भजन का अर्थ क्या है ? भजन का अर्थ शास्त्रों में, पुराणों में, ऋषिमुनियों ने अपनी-अपनी सोच से समझाया है और बताया है | लेकिन यह मैं अपनी सोच से समझाना चाहता हूँ | भजन यानी के जीसका नाम भजने से मन तर जाए उसे हम भजन कहते हैं | (भज = यानि के किसी का नाम लेना, उसका नाम रटना और न = यानी मन )अपने मन से शांत चित्त होकर हरि का गुणगान करना उसको ही हम भजन करते हैं | दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं भजन यानी के हरि का नाम लेना, श्रीहरि का गुणगान करना, भगवत चिंतन करना, भगवान का स्मरण करना, बस भगवान के विचार में, उनके ख्यालों में खो जाना ही हम भजन कहते हैं |
अब हम कीर्तन के बारे में समझेंगे की कीर्तन का अर्थ क्या है ? कीर्तन यानी के किर शब्द जो कर शब्द से पडा है | कर यानी के हाथ और तन यानी के शरीर | जब हम उस हरि का नाम उच्चारण करते समय दोनों हाथों से ताली बजाकर उनका स्मरण करते हैं , तब हमारा तन पूरा उसमें लीन हो जाता है उसको हम कीर्तन कहते हैं | यानी के हरि के उच्चारण साथ हाथों से ताली से ताली मिला कर अपना तन उसी में पूरा डूब जाता है, या तल्लीन हो जाता है उसे ही हम कीर्तन कहते हैं | आध्यात्मिक में भजन-कीर्तन की बहुत भारी महिमा बताई गई है | सभी भक्तों ने, संतों ने और ऋषिमुनियों ने इस भजन-कीर्तन का सहारा लेकर इस भवपार से तर गए हैं | ये बिल्कुल पक्की बात है | जैसे कि सौराष्ट्र के नरसिंह मेहता, मेवाड़ की मीरा भजन-कीर्तन से अपना तो जीवन सफल किया साथ में कहीं के जीवन को संवारा है | सारे भक्तों की बात करें तो नरसिंह मेहता का नाम बहुत आदर से लिया जाता है | क्योंकि नरसिंह मेहता ने तो जूनागढ़ में तो क्या पूरे सौराष्ट्र में कमाल कर दिया था | आज तक ऐसा भक्त कलयुग में नहीं हुआ और होगा भी नहीं | क्योंकि उसने 52 बार भगवान को धरती पर उतारा था | उनका पूरा जीवन भक्तिमय जीवन था | स्वयं भगवान उनको मिलने आते थे | क्यों मिलने आते थे ? क्योंकि नरसिंह मेहता हर रोज भजन-कीर्तन करते थे ओर वह भी पूरा तन,मन और शुद्ध भाव से करते थे | नरसिंह मेहता भजन के साथ अपनी किरताल से कीर्तन भी करवाते थे जिससे वह भी तैर जाते थे और दूसरों को भी भवपार से तैराते थे | फिलहाल तो यहाँ में नरसिंह मेहता का पूरा वर्णन नहीं कर पाऊंगा, परंतु बाद में उनका पूरा विस्तार से वर्णन करेंगे |
इस कलजुग में तो ईश्वर प्राप्ति के लिए हरि भजन ही सर्वोत्तम बताया गया है | भजन-कीर्तन से जितनी जल्द से ईश्वर प्राप्ति होती है वह और कोई मार्ग से नहीं होती | शीघ्र परमात्मा प्राप्ति के लिए भजन-कीर्तन सर्वोत्तम मार्ग है | क्योंकि यह मैं नहीं कहता, परंतु हमारे शास्त्राे और संत-महापुरुष कहते हैं | हमारे गुरु नानक देव जी भी कहते थे कि ” कली में हरी को नाम, निसदिन नानक जो जपे सफल होवे सब काम |” सत्य तो यह है कि यदि हम सच्चे मन से, शुद्ध भाव से भी उनका नाम लिया तो भी वह हमारे साथ है, हाजरा हजूर है | उसे खोजने के लिए गिरी-गुफा या जंगलों में जाना नहीं पड़ेगा | उसकी प्राप्ति के लिए तो भजन-कीर्तन ही काफी है | इसलिए तो हमारे संतो उनके कथा-सत्संग में भजन-कीर्तन तो अवश्य करवाते हैं | जिससे हमारा मन उसमें शीघ्र स्थिर हाे जाता है | इसीलिए स्वयं भगवान नारदजी को कहते हैं ,
नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न च ।
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ॥
अर्थ यह है कि है नारद ! मैं कभी-कभी वैकुंठ में भी नहीं होता और योगी, तपस्वी आदि-आदि के लोगों का हृदय भी मैं लांग जाता हूँ, परंतु जहां मेरे भक्तों, संतो भजन-कीर्तन करते हैं वहां तो मैं तुझे अवश्य मिल पाऊंगा | अवश्य मिल पाऊंगा | यह मेरा सत्य वचन है |
यदि हम भगवान के वचनों को हम शिरोधार्य करते हैं तो जीवन में कभी भी दुखों से हार नहीं मानेंगे | बिल्कुल सत्य है | क्योंकि हमारे सामने ऐसे कई सारे दृष्टांत प्रत्यक्ष बन गए हैं | जैसे कि भक्त जलाराम, संत तुकाराम, गोरा कुंभार विगेेरे-विगेरे संताे-भक्तों ने भगवान के वचनों पर श्रद्धा विश्वास किया तो उनका जीवन पूर्ण भगवतमय बन गया मंगलमय जीवन बना दिया | ये सारे भक्तों ने अपना जीवन को सफल बनाया, परंतु कही सारे संसार में तपते हुए मनुष्य का जीवन भी तारा है | यही तो भजन-कीर्तन की ताकत है | आज के युवा सोचते हैं कि यह क्या भजन-कीर्तन करना, साधु-संतों पर विश्वास क्यों करना और वही पुरानी जीवन शैली में जीना विगेरे-विगेरे की साेच रखते हैं | परंतु यह बिल्कुल गलत है उन लोगों की साेच | हम जितना फास्ट लाइफ में जीयेंगे उतना हमारा मन फास्ट से चंचल होता जाएगा | उसको फिर ईश्वर की ओर प्रभु-भक्ति में लगाना उतना ही कठिन हो जाएगा | संसार परिवर्तनशील है | ऐसीे तो कहीं फास्ट लाईफ आयेगी और चली जाएगी | लेकिन हमें अपना काम बना लेना चाहिए | इस युग के बारे में मैं बात करू ताे आप चाहे लाखों करोड़ों रुपया खर्च करोगे सच्चा सुख, सच्चा आनंद और सच्ची शांति के लिए पर नहीं मिल पाएगी | आपका मन फिर वही ज्याें के त्यों चंचल की अवस्था में ही रहेगा | लेकिन जहाँ हरीभजन, कीर्तन होता है सच्चे संतों का सानिध्य प्राप्त हो तो बिना कोई खर्च किए ही आपका मन स्थिर हो जाएगा | जिससे आपको सच्चा सुख, सच्चा आनंद और सच्ची शांति का अनुभव हो जाएगा | जो मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी कहलाती है |
हरे राम……हरे राम……हरे राम…….
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