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संसार में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ?

सभी भक्तजनों को मेरी ओर से जय सियाराम……..


परमात्मा ने सृष्टि की रचना बहुत सुंदर तरह से की है | उसमें कोई भी व्यक्ति यानी के वैज्ञानिक, विद्वान, राजा-महाराज, बुद्धिमान या कोई भी महापुरुष उसमें भूल नहीं निकाल शकते | क्योंकि सृष्टि की रचना कोई आम आदमी ने नहीं बनाई किंतु स्वयं परब्रह्म परमात्मा ने ही बनाई है | इसलिए तो यह सृष्टि पूरी रहस्याे से भरी हुई है | कई सारे रहस्य छुपे हुए है | कुछ रहस्य की बात करु तो जैसे कि स्वर्ग लोक जाने का रास्ता हमारे पृथ्वी से ही जाता है, वैसे ही नरकलाेक जाने का रास्ता, हिमालय की गिरी कंदराओं, कैलाश पर्वत ये सारे रहस्य से भरे हुए है | ये सारे रहस्याे को  उलजाने के लिए न जाने कितने राजा-महाराजाओं, वैज्ञानिको, बुद्धिमानों आ-आ के चले गए फिर भी वह रहस्य आज तक ज्यों के त्यों है | यदि यह सारे रहस्य को जानना है तो हमें अपना मन बुद्धि परमात्मा में लगाना पड़ेगा | यानी कि जो भगवत स्वरुप है जिसने अपना मन उस परमात्मा में एकाकार किया है ऐसे संत महात्माओं ,योगी-महापुरुषाे और सच्चे संतों की शरण लेनी पड़ेगी | तब हम थोड़ा कुछ जान पाएंगे | हमारे भारत देश में ऐसे कई संत-महात्माओं योगी महापुरुषों हो गए हैं | जैसे कि स्वामी विशुद्धानंद, योगी श्यामाचरण, स्वामी दयानंद, तैैलंगस्वामी , रामकृष्ण परमहंस, कबीर जिन्होंने अपने योगशक्ति से न जाने कितने ब्रह्मांडाे के ब्रह्मांड का रहस्य खोज डाला था | ऐसे सच्चे संत महापुरुषों का संग करना चाहिए | जैसे पारसमणि के स्पर्श से लोहा कंचन बन जाता है , ऐसे ही यह महापुरुषों का संग करने से हम भी लक-चौरासी योनी का आवागमन से मुक्त हो जाते हैं और उस परम सुख,शांति और आनंद सिथत हो जाते हैं | जहां सारे रहस्य अपने आप खुल जाते हैं |

फिलहाल तो मैं यह रहस्य के बारे में पूरा विस्तार से नहीं बता पाऊंगा | किंतु बाद में मैं कोशिश करूंगा आपको बताने के लिए | लेकिन पहले हम यह जानेंगे कि संसार में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ? हकीकत में आपको शायद यह मामुली सवाल लगता होगा | पर यह बिल्कुल सच है कि हमारे सामने ऐसे कई आश्चर्य होते हैं फिर भी हम उन से अनजान रहते हैं | क्योंकि हम उस आश्चर्य को रूटीन कहते हैं और सोचते हैं कि चलता रहता है | पर कभी ध्यान से उसे देखने का अथवा समझने की कोशिश नहीं की | कोशिश भी कैसे करें ? क्योंकि परमात्मा की माया ही ऐसी है कि जानने के बाद भी हम अनजान ही बन जाते हैं | हमको उस तरफ सोचने का समझने का मौका ही नहीं देते | इसलिए तो हम उसे परब्रह्म परमात्मा की महामाया कहते हैं | इस महामाया के कारण ही हम उस आश्चर्य को नहीं देख पाते | ऐसे तो कहीं सारे आश्चर्य है | जैसे कि एक छोटा सा नन्ना सा शिशु जो अपनी मां की गोद में खेलता- कुदता है और वही नन्हा सा बालक एक दिन बड़ा युवक बन जाता है | फिर भी अपने मां-बाप को पता नहीं चलता | यह भी तो एक बड़ा आश्चर्य है कि एक छोटा बालक कब हमारे आंखों के सामने बड़ा हो गया और पता ही नहीं चला | ऐसे ही काली मूँछ, काली दाढ़ी, काले बाल कब सफेद हो जाते हैं पता ही नहीं चलता | एक काली भेंस हरा हरा घास खाती है और सफेद दूध देती है, हम जो भी भोजन करते हैं उसका लाल खून बन जाता है, पौधे की बात करें तो एक बीज हम बाेते है चाहे नीम का हो या आम का पर ये कब बड़ा वटवृक्ष बन जाता है हमें मालूम ही नहीं पड़ता | क्योंकि हमने कभी गौर से उसे देखने का यां सोचने की कोशिश ही नहीं की | ऐसे तो कई सारे आश्चर्य इस संसार में है उसके बारे में यदि हम सोचने जाएंगे तो हमारी मति काम करना बंद हो जाएगी | 

लेकिन यहां मैं उस आश्चर्य की बात करना चाहता हूं जो यक्ष और युधिष्ठिर महाराज के बीच संवाद हुआ था | यह महाभारत का प्रसंग है जब पांच पांडव और द्रौपदी वनवास दरमियान वह लोग घाैर जंगल में विचरण करते थे | तब द्रोपदी को बहुत प्यास लगी थी | इसलिए युधिष्ठिर ने पानी का इंतजाम करने के लिए चारों भाइयों से कहा कि अब हमें पानी का थोड़ा प्रबंध करना चाहिए | जिससे हमारी थोड़ी प्यास बुझ जाए और आगे की यात्रा चालू रखें | ऐसा कहकर युधिष्ठिर ने सभी भाइयों को एक-एक करके पानी का जलाशय खोजने को भेजा | पर क्या जो भी खोजने जाता पर वापस नहीं आता ऐसा करके चारों भाई कहीं देर तक न लौटने के कारण युधिष्ठिर को चिंता होने लगी और वह भी अपने भाइयों को ढूंढने के लिए उसी दिशा की ओर चलने लगे | खोजते-खोजते युधिष्ठिर भी वहां जा पहुंचे जहां वह चार भाइयों एक सरोवर किनारे मृत अवस्था में पड़े थे | उनकी ऐसी दशा देखकर युधिष्ठिर हैरान और चिंतित हो गए और सोचने लगे कि मेरे चार भाइयों की दशा किसने ऐसी की होगी ? किसने मारा होगा ? बस ऐसा सोचकर वह भी पानी पीने नीचे उतरे तब वहां एक गेबी आवाज़ सुनाई दी | युधिष्ठिर थोड़े बुद्धिमान थे | इसलिए पानी पीने से पहले जो आवाज सुनाई दी उसको ध्यान से सुना और बोला कि आप कौन हो ? और क्यों ऐसा मेरे भाइयों के साथ किया ? तब वह गेबी आवाज ने कहा मैं यक्ष हूं और यह मेरा सरोवर है | तुम्हारे भाइयों ने मेरा प्रश्न के उत्तर दिए बिना ही जल का ग्रहण किया और उस की यह दशा हुई है | यदि तुमने भी मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया और जल ग्रहण करोगे तो तुम्हारी भी हालत ऐसी होगी | तब युधिष्ठिर महाराज ने कहा, नहीं नहीं यक्ष देवता तुम्हारे सारे प्रश्नों का उत्तर दूंगा उसके बाद ही जलपान करूंगा |

फिर यक्ष देवता  ने कहीं सारे प्रश्न युधिष्ठिर को किए और सारे प्रश्नों का शांत-चित होकर संतुष्टि से जवाब दिया | सारे प्रश्नों में से जाे अंतिम प्रश्न यही था कि संसार में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ? तब  युधिष्ठिर ने बहुत सोच समझकर और शांत-चित भाव से कहा था कि संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य मनुष्य की मृत्यु है | सब मनुष्य जानते हैं कि इस देह की मृत्यु होगी, यह देह नश्वर है फिर भी मनुष्य उसे अनसुना कर के अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं | पर कभी सोचा ही नहीं कि एक दिन इस शरीर की भी मृत्यु होगी | युधिष्ठिर ने जो जवाब दिया वाे बिल्कुल सत्य है | हम माने या ना माने पर सत्य तो यही है कि हमारे शरीर की मृत्यु निश्चित है | उसे कोई नहीं टाल शकता |आज की तारीख की बात करूं तो ऐसा कोई घर नहीं होगा जिसने दुखद मृत्यु का प्रसंग देखा नहीं होगा | सभी ने उसका अनुभव किया होगा | यदि हम किसी की शमशान यात्रा में जाते हैं तब क्या सोचते हैं और क्या देखते हैं जैसा कि हम सोचते हैं कि बिचारा कितना अच्छा व्यक्ति था, दयालु था, धार्मिक था विगेरे-विगेरे……..और देखते है कि उसके शरीर को जला रहे हैं और वहां सभी उनको प्रणाम करके वहां से जा रहे हैं | हम लोग भी वहां से जल्दी जाने की तैयारी करते हैं | क्योंकि किसी को नौकरी जाना है , तो किसी को बाहर गांव जाना है, किसी को कोई घर का अंगद काम पूरा करना है ऐसा सोच कर सभी लोग वहां से जल्द से जल्द निपटाकर घर वापस जाने की चिंता में तल्लीन हो जाते हैं | पर यह नहीं सोचेंगे कि हमें भी एक दिन यहां आना पड़ेगा | हमारी भी ऐसी दशा होगी | हमको भी जलाएंगे | लेकिन नहीं सोचेंगे | क्योंकि यह सारा माया का खेल तो है | महामाया का प्रभाव है | जो कोई भी मनुष्य नहीं बच पाता इस संसार की माया जाल से प्रभु की यह मोहमाया से छूटने का बस एक ही तरीका है और वह है हरि नाम… हरि भजन….. हरि कथा….. बाकी तो सब जग की व्यथा……..!

जय सियाराम…….. हरे राम….. हरे राम…….हरे राम…….!ॐ……..ॐ……..ॐ……..

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