सभी भक्तजनों को मेरी ओर से जय सियाराम……..
आज आपको बताऊंगा मनुष्य की झंखना सुख शांति और आनंद क्यों है ? क्योंकि सभी मनुष्य को वास्तविक में सुख, शांति और आनंद चाहिए | उसका मूल स्वभाव ही सुख, शांति और आनंद स्वरुप है | उसके लिए मनुष्य क्या-क्या नहीं करता ? उसकी प्राप्ति के लिए न जाने कहां कहां भागता फिरता है ? फिर भी उनको पूरा सूख और आनंद का अनुभव नहीं मिल पाता | क्योंकि वह यह सब बाहर ढूंढता है, खोजता है | इस सुख की प्राप्ति के लिए न जाने कितने राजा-महाराजा आ-आ के चले गए पर सच्चा सुख का आनंद और अनुभव नहीं ले पाए | आजकल हम लोग सुख के लिए बहिर्मुख होते जाते हैं | यानी के बाहर खोजते है | जैसे कि कोई उस सुख के लिए डांस क्लबों में, तो कोई बड़े मॉल में, तो कोई फन पार्क में, तो कोई थियेटरों में जाकर उस का आनंद लेना चाहते हैं पर वह सुख क्षणभंगुर होता है सच्चा सुख नहीं | एक ऐसा प्रसंग आपको कहता हूं जिसे पढ़कर आप थोड़ा कुछ समझ जाओगे | एक गांव था | उसमें कई प्रकार के लोग रहते थे | लेकिन वहां एक ऐसा युवक रहता था जिनको कभी भी थोड़ा में संतुष्टि नहीं थी | उनके पास जो भी था वह उसे कम ही लगता था | उनके पास एक खेत था और उससे उसको तृप्ति नहीं थी | दूसरों के 10-15 खेत देखकर उनको बहुत दुख होता था | क्योंकि उनको जल्द से जल्द धनवान बनना था | वह हर रोज सोचता कि कैसे ढेर सारा धन इकट्ठा करलु और आराम से जीवन बिताऊँ | काम में थोड़ा आलसी था | हर रोज सुबह खेत में जाता दोपहर को खाना खाके थाेडी नींद ले लेता और शाम को घर वापस आ जाता | पूरा शेखचिल्ली विचारवाला था |क्योंकि उसे बाहर की सुख शांति और आनंद सच्चा लगता था | बस मैं इतना धन, इतना रुपया, इतनी जमीन प्राप्त करलु ऐसी उसकी सोच थी | उसी गांव में एक दानी मुखिया भी रहता था | उसके पास बहुत सारी जमीन थी | जो दान पुणय में समझता था | संजाेगाेवसात एक दिन मुखिया बीमार पड़ा | इसलिए उसको लगा की अब मेरे पास जो कुछ भी है वह गांव के लोगों में थोड़ा थोड़ा दान पुण्य कर देना चाहिए | ऐसा सोचकर उन्होंने पूरे गांव में संदेशा फैला दिया की मुखिया अपनी सारी जमीन गांव के लोगों में दान करेगा और कल सुबह सभी गांव के लोग चौराहे पर इकट्ठा होना है | यह संदेश उस युवक के पास भी पहुंचा ऐसा संदेश सुनकर तो वह खुशियों के मारे झूम उठा और कल सुबह के इंतजार में खो गया | दूसरे दिन सभी गांव के लोग वहां इकट्ठे हुए और सभी दान लेने की प्रतीक्षा कर रहे थे | वाे युवक भी वहां शामिल हो गया |
तब गांव के सरपंच ने सभी ग्राम जनों को बोला आज मैं आपको सभी लोगों को मैं अपनी जमीन दान करना चाहता हूं | जिसको जितनी जमीन चाहिए उतनी जमीन ले सकता है | बस इतना सुन कर तो वह युवक के होश उड़ गए | क्योंकि वह जो सोचता था वही उनको मिला | तब सरपंच ने एक शर्त रखी कि जिन को जमीन जितनी चाहिए उतनी ले सकता है पर जहां से चलने शुरुआत की है वहीं पर वापस आना होगा | यानी के सूर्यास्त होने से पहले उसी जगह पर वापस आना हाेगा | उसके बाद समय समाप्त हो जाएगा और जिसने जमीन जितनी कवर की होगी उतनी उनको मिलेगा | शर्त के अनुसार जिन को जमीन चाहिए थी उन लोगों ने स्टार्ट कर दिया | वह युवक भी पूरी जान लगा कर उसमें जुड़ गया | दोपहर तक जिनको जितनी जमीन चाहिए थी उन लोगों उसी में तृप्त होकर वहां से वापस मोड़ आए | कुछ देर तक 2-5 और उनके साथ जुड़े रहे और उसके बाद वह लोग भी वापस लौट आए | अब तो वह अकेला युवक ही बचा | वह तो बस चलता ही रहा | अब सूर्यास्त होने वाला था इसलिए थोड़ा वहां घबराया फिर भी वह चलता रहा और सोचा कि बस अभी आधा घंटा बाकी है मैं जल्दी से दौड़ कर वापस पहुंच जाऊंगा | पर क्या ? अब तो 15-20 मिनट ही बाकी बाकी थी और वापस माेडना चाहता था | लेकिन उनके हाथ से समय निकल चुका था | उनको चिंता होने लगी थी जल्दी से पहुंच जाने की | वापस जाते जाते तो पूरा सूर्यास्त हो चुका था और उस जगह पहुंचते ही उन्होंने अपना अंतिम स्वास छोड़ दिया | यानी उनका प्राण निकल गया उसने कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाया | बस ठन-ठन पाल ही रह गया | इस प्रसंग से यह ज्ञात होता है कि जो मिला उसी में संतुष्टि रखना चाहिए | अधिक लोभ और सुख की आशा नहीं करनी चाहिए | यदि हम अपने भीतर ही सुख खाेजेगे तो जरूर हमें उसका अनुभव होगा | लेकिन थोड़ा प्रयास करना होगा और कोई सच्चे संत महात्माओं का संग करना चाहिए | यानी कि उनके कथा सत्संग में जाना चाहिए जिससे हमारा मन शांत होगा और शांत मन हुआ तो समझो कि भीतर से फिर सुख शांति और आनंद का अनुभव होने लगेगा |
हरे राम……हरे राम……हरे राम…….
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