सभी भक्तजनों को मेरी ओर से जय सियाराम……..
वैशाखी माह में आनेवाली पूर्णिमा को हम बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं | इस पूर्णिमा के दिन बाैद्ध धर्मी, बुद्ध प्रेमीओ इस महोत्सव को धाम-धूम से मनाते हैं | क्योंकि इसी दिन ही भगवान बुद्ध को अपने आप का, स्व-स्वरुप का ज्ञान प्राप्त हुआ था |भगवान बुद्ध का जन्म इसवी सन पूर्व 563 के करीब कपिलवस्तु के पास लुंबिनी में हुआ था | उनके पिता का नाम राजा शुद्धोधन था और माता का नाम महामाया था | भगवान बुद्ध के जन्म के कुछ ही दिन बाद उनकी माता का देहांत हो गया था | उसके बाद महामाया की बहन गौतमी ने ही उसे पाल- पोस के बड़ा किया था | इसलिए उसकाे गाैतम भी कहते थे |भगवान बुद्ध का मूल नाम सिद्धार्थ था | उनके जन्म के बाद राजा शुद्धोदन के महल में संत महात्माओं आए थे | जब संत ने उस बालक को हाथ में लिया तब ही भविष्यवाणी कर दी थी कि हे राजा तुम्हारा यह नन्हा सा बालक एक दिन बहुत बड़ा संत-महापुरुष बनेगा | यह कोई साधारण बालक नहीं है | यह तो युगप्रवर्तक होगा, समाज सुधारक होगा | इनकी ख्याति पूरे विश्व में फैलेगी और यह सबको ज्ञान का उपदेश देगा | जो भी उनकी शरण में आएगा उसे सुख, शांति और आनंद का अनुभव होगा | हे राजा ! यह बालक जब बड़ा होगा तब उनके सामने कोई ऐसी घटना बनेगी जिससे उसका मन इस संसार से उद्विग्न हो जाएगा और जिस दैवीकार्य के लिए जन्म लिया है उसकी ओर चल पड़ेगा | बस इतना कहकर वह संत-महात्माओं वहां से चले गए | पर राजा शुद्धोधन को वह संत महात्माओं की बातें सताने लगी थी | कि इतना बड़ा राजपाट, इतना सारा धन, राज- वैभव,यह राजगादी को कौन संभालेगा ? मेरे बुढ़ापे में कौन इसका ख्याल रखेगा ? विगेरे-विगेरे प्रश्नों राजा के मन में उठने लगे थे | राजा को पता था कि संतों की भविष्यवाणी को कोई टाल नहीं शकता | इसलिए राजा ने अपने बेटे के लिए बचपन से ही सुखसुविधा वाली, ऐशो-आराम वाली जिंदगी का प्रबंध कर दिया था
फिर राजा ने अपने बेटे सिद्धार्थ के लिए ऐसा माहौल बना दिया कि जहां उनको पता ही नहीं चले कि दु:ख क्या होता है ? वृद्धावस्था क्या होती है ? शरीर की जीणँ अवस्था क्या होती है ? मृत्यु क्या है ? यह सारी परिस्थितियों से राजा ने सिद्धार्थ को दूर ही कर दिया था | उनके सामने हर बार सुख, आनंद और वैभववाला वाता-वरण बना देता था | इसके लिए सिद्धार्थ को यह सारी चीजें सच्ची लगती थी | उनका जीवन अब वैभवाेल्लास और मौज-मस्ती से जाने लगा और देखते- देखते ही सिद्धार्थ बड़ा हो गया | और राजा ने उनकी शादी भी कर दी | उनकी पत्नी का नाम यशोधरा था | थोड़े समय के बाद उनको एक बेटा भी हुआ और उनका नाम राहुल था | पर विधाता को कुछ ओर ही सिद्धार्थ से करवाना था | इसलिए अच्छे दिन भी बहुत नहीं टिक पाए | अब सिद्धार्थ को अपना पूरा नगर घूमने की इच्छा हुई | तब सिद्धार्थ ने अपने पिताजी से नगर देखने की आज्ञा ली | राजा ने अनुमति दे दी पर पूरा ऐसा बंदोबस्त करवाया जहां नगर में कोई दु:खी, वद्ध या बीमार व्यक्ति उनको देखने को ना मिल जाए | पर जो होना है सो होने वाला ही है उसको कोई हस्तक्षेप नहीं कर शकता | जैसे कि महाभारत युद्ध में स्वयं भगवान श्री कृष्ण थे | फिर भी वह युद्ध को नहीं रोक पाए | श्री कृष्ण तो खुद सृष्टि के स्वयं कर्ता-धर्ता थे | फिर भी होनी को रोक नहीं शके | ऐसे ही सिद्धार्थ में से भगवान बुद्ध जिनके भाग्य में लिखा गया था उने कौन रोक शकेगा ?
अब वह समय आनेवाला था, जो सिद्धार्थ के जीवन में बड़ा बदलाव लानेवाला था | दूसरे दिन सिद्धार्थ अपने सारथी को लेकर नगर की परिक्रमा करने निकल पड़े | पहले तो सब नगरजनो सुखी, संपन्न और आनंदित में दिखते थे | कोई भी दु:खी, बीमार या वृद्ध नहीं देखने को मिला | इसलिए सिद्धार्थ को लगा कि मैंने जैसा जीवन जिया वैसा ही सब है | लेकिन नगर से थोड़ी दूर जाने के बाद अचानक सिद्धार्थ की नजर एक बूढ़े व्यक्ति, वृद्ध व्यक्ति के ऊपर पड़ी | तब सिद्धार्थ ने सारथी को बोला, रथ मेरा राेको, ठहरो | सारथी ये सफेद बाल, सफेद दाढ़ी और जर्जरित वाला व्यक्ति कौन है ? और क्यों लकड़ी के सहारे चलता है ? सारथी बोला, राजन ! ये बूढ़ा व्यक्ति है और सबको इस अवस्था से गुजरना पड़ता है | मैं भी एक दिन बूढ़ा हो जाऊंगा |आप भी बूढ़े हो जाओगे | अब राजा को थोड़ा झटका लगा | फिर और थोड़े आगे गए तो एक कुष्ठरोगी व्यक्ति मिला | जो अपनी अस:हय पीड़ा और वेदना से बुमराण करता था | जिसे देखकर सिद्धार्थ ने फिर से सारथी को बोला, ऐसे अजीब सी हरकतें करने वाला व्यक्ति कौन है ?और क्यों बुमराण मचा रहा है ? तब सारथी बाेला, यह बीमार व्यक्ति है और उससे कुष्ठ रोग हुआ है | उसकी अस:हय पीड़ा और वेदना से उसका मन आकुल-व्याकुल हो रहा है | उसकी वेदना उसे सहा नहीं जाता | इसके लिए वह जोर जोर से चिल्लाता है , बुमराण करता है |और फिर थोड़े दूर गए तो एक और बड़ा आश्चर्य देखने को मिला | उनके रथ के आगे से कुछ लोग मृत शरीर को समशान ले जा रहे थे | तब सिद्धार्थने सारथी काे बाेला, ये कौन सा फिर मैं नया दृश्य देख रहा हूं , एक सोते हुए व्यक्ति को सब उठाकर कहां ले जा रहे हैं ? और उनके पीछे इतने सारे व्यक्ति क्यों जा रहे हैं ? और क्यों ऐसा बोलते हैं कि राम नाम सत्य है…..! राम नाम सत्य है….! सारथी बोला, हे राजन ! यह सोया हुआ व्यक्ति नहीं है परंतु मृत शरीर है | इसको सब समसान में जलाने के लिए ले जा रहे हैं | यही तो सृष्टि का नियम है कि जिनका जन्म है उनकी मृत्यु निश्चित है | सिद्धार्थ बोले , क्या मेरी भी मृत्यु हाेगी ? सारथी बाेला, हा, तुम्हारी भी हाेगी और मेरी भी मृत्यु हाेगी | सभी को एक दिन इसी रास्ते से जाना होगा
यहां सिद्धार्थ को और एक बड़ा झटका लगा | फिर और थोड़े दूर यानी के नगर से बाहर चले गए | तब सिद्धार्थने एक साधु सन्यासी व्यक्ति को देखा | जो अपनी छोटी सी झोपड़ी के पास एक वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ अवस्था में बैठे थे और बोला, सारथी ये व्यक्ति क्यों नगर से बाहर और अकेला यहां शांति से बैठा है ? सारथी ने कहा, राजन ! ये सन्यासी है | उनका मन संसार से उपराम हो गया है | उनको पता है कि संसार में कोई सार नहीं है | इसलिए उनको पता है कि ईश्वर प्राप्ति में परमात्मा प्राप्ति में ही सार है | इसलिए वह शांत जगह में बैठा है | बस इतना देखकर वह लोग वापस महल की ओर चल पड़े | राजमहल तो आ पहुंचे पर सिद्धार्थ पूरा बदल चुका था | रात को ठीक से सो नहीं पाते थे | बस उसी घटना उनके सामने दिखाई देती थे | और अपने भीतर ही भीतर मनाे-मंथन कर रहे थे की शरीर के वृद्ध अवस्था भी होती है ? शरीर बीमार भी पड़ता है ? शरीर की मृत्यु भी होती है ? काफी दिनों तक ऐसा विचार-विमर्श अपने भीतर ही भीतर चलता रहता था | उसके बाद सिद्धार्थ ने गौतम ने दृढ़ निश्चय, दृढ़ मनोबल करके एक रात को पुत्र, पत्नी, परिवार और राजपाट को छोड़कर सदैव के लिए निकल पड़े अपने शास्वत स्वरूप की खोज में ,आत्मतत्व की खोज में ऐसे तो निकल पड़े हैं कि “सिद्धार्थ में से भगवान बुद्ध बन गए” | समाज को एक नया संदेश दिया | नहीं राह दिखाई | भगवान बुद्ध का उपदेश यही था कि जीते जी अपने आप में , अपने तत्व में , स्थित हो जाए | शास्वत स्वरूप का, स्व का अनुभव कर लो | फिर दुनिया की कोई ऐसी ताकत नहीं है जो आपको हिला दे | चाहे दु:खों का पहाड़ आ जाए या कोई विकट परिस्थितियाँ आ जाए | फिर भी आप हंसते-मुस्कुराते , मौज-मस्ती और आनंद से उनका सामना करके आप ज्यों के त्यों का अनुभव कर पाओगे |
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